“लैलूंगा में मनरेगा घोटाला प्रोग्राम अधिकारी दिकप एक्का, तकनीकी सहायक व अन्य अधिकारियों की मिलीभगत से हुआ डभरी निर्माण में फर्जीवाड़ा”

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रायगढ़, लैलूंगा, छत्तीसगढ़:
मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) योजना के अंतर्गत लैलूंगा विकासखंड के कुंजारा ग्राम पंचायत में एक बड़े भ्रष्टाचार का मामला सामने आया है। आरोप है कि प्रोग्राम अधिकारी दिकप एक्का, तकनीकी सहायक कवर, और अनुविभागीय अधिकारी (RES) की मिलीभगत से ग्राम कुंजारा निवासी नरेश गुप्ता के नाम पर फर्जी डभरी (तालाबनुमा जल संरचना) निर्माण दिखाकर लाखों रुपये की सरकारी राशि निकाल ली गई, जबकि वास्तविकता में डभरी का कोई निर्माण नहीं किया गया।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, मनरेगा योजना के तहत वर्ष 2023-24 में कुंजारा गांव में डभरी निर्माण का प्रस्ताव पारित हुआ था, जिसमें ग्रामीण नरेश गुप्ता के नाम पर भूमि चयन कर कार्य स्वीकृत किया गया। योजना के अंतर्गत इस डभरी के निर्माण पर लाखों रुपये खर्च किए जाने की बात बताई गई, लेकिन मौके पर जांच करने पर पाया गया कि स्थल पर कोई भी डभरी निर्माण नहीं हुआ है। केवल कागजों में निर्माण कार्य पूर्ण दिखाकर भुगतान की प्रक्रिया पूरी कर दी गई।
इस पूरे फर्जीवाड़े में ग्राम पंचायत की रोजगार सहायक गिरजा प्रधान की भूमिका भी संदिग्ध बताई जा रही है। स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार, गिरजा प्रधान ने अधिकारियों की मदद से निर्माण कार्य को बिना कराए ही मस्टररोल भरकर मजदूरी और सामग्री भुगतान की प्रक्रिया पूरी कर दी। नरेश गुप्ता का नाम केवल एक मोहरे की तरह प्रयोग किया गया और वास्तविक लाभ अधिकारियों एवं अन्य जिम्मेदार कर्मचारियों को हुआ।
ग्रामीणों ने जब इस मामले को लेकर पंचायत एवं जनपद अधिकारियों से जानकारी मांगी तो पहले उन्हें गुमराह किया गया। बाद में आरटीआई (सूचना का अधिकार) के तहत दस्तावेज निकलवाने पर मामले की सच्चाई सामने आई। जांच में यह भी स्पष्ट हुआ कि निर्माण स्थल पर कोई भी मिट्टी खुदाई या डभरी का निशान तक नहीं है, फिर भी भुगतान की संपूर्ण प्रक्रिया पूरी कर ली गई।
स्थानीय जनप्रतिनिधियों और समाजसेवियों ने इस घोटाले को गंभीर बताते हुए जिला कलेक्टर और लोकायुक्त से मामले की जांच कराने की मांग की है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की फर्जीवाड़ा न केवल सरकारी धन की बर्बादी है बल्कि ग्रामीणों के साथ धोखा भी है, जिन्हें वास्तव में रोजगार और जलसंसाधन की आवश्यकता थी।
मनरेगा योजना का उद्देश्य ग्रामीणों को रोजगार देना और गांवों में जलसंरचना सहित अन्य मूलभूत सुविधाओं का विकास करना है, लेकिन इस मामले में योजना को भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा दिया गया है। यदि इस प्रकार के भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लगाया गया तो ग्रामीण विकास की अवधारणा केवल कागजों तक ही सीमित रह जाएगी।
वहीं, इस पूरे मामले में नाम आने के बाद संबंधित अधिकारियों ने किसी भी प्रकार की टिप्पणी करने से इंकार कर दिया है। कुछ अधिकारियों का कहना है कि वे निर्माण स्थल की दोबारा जांच करवाएंगे, जबकि कुछ ने सीधे तौर पर आरोपों को बेबुनियाद बताया है।
स्थानीय नागरिकों की मांग है कि इस घोटाले की निष्पक्ष जांच के लिए एक उच्चस्तरीय जांच समिति गठित की जाए जो पूरे निर्माण कार्य, भुगतान प्रक्रिया, लाभार्थी की स्थिति और जिम्मेदार अधिकारियों की भूमिका की गहराई से जांच करे। इसके साथ ही दोषियों पर सख्त कानूनी कार्यवाही हो और गबन की गई राशि की वसूली सुनिश्चित की जाए।
मनरेगा योजना को पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ लागू करने की बात बार-बार कही जाती है, लेकिन इस प्रकार के मामलों से यह स्पष्ट होता है कि योजना की जमीनी हकीकत कुछ और ही है। कुंजारा जैसे दूरदराज के गांवों में गरीबों का हक मारकर यदि कुछ अधिकारी और पंचायत कर्मी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, तो यह पूरे सिस्टम पर सवाल खड़ा करता है।
यदि इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया गया, तो यह अन्य गांवों में भी इसी तरह के फर्जी निर्माण कार्यों को बढ़ावा देगा और ग्रामीणों का भरोसा शासन व्यवस्था से उठ जाएगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि शासन-प्रशासन इस मामले पर शीघ्र संज्ञान लेकर दोषियों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करेगा और ऐसी योजनाओं की साख को बहाल करने की दिशा में ठोस कदम उठाएगा।

EDITOR – EXPOSE36LIVE
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